Sunday, July 10, 2011

वैदिक ग्रंथो में मिलावट#1 :गुलामी का प्रथम कारन

प्राचीन भारतीय साहित्य कि यह एक प्रमाणित हो चूका है कि समय समय पर मौकापरस्त लोगो हमारे शाश्त्रो मिलावट किये. प्रछेप, छेपन,अथवा प्रछिप्त शब्द का अर्थ है है मिलावट.

मुझे डॉ. सुरेन्द्र कुमार कि लिखी राजर्षि मनु और उनकी मनुस्मृति पड़ने को मिली. उस साहित्य के अनुसार बहुत सरे साबुत मिले जिजसे प्रूफ होता है, कि हमारे शाश्त्रो में मिलवात हुई है. महारिशी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थ प्रकाश (सत्य + अर्थ प्रकाश = सही अर्थ को सामने लाना) सामने लागए है. निम्न कुछ प्रमुख ग्रंथो के कुछ शक्ष्य दिए है a) बाल्मीकि रामायण में मिलावट : रामायण के तीन सस्करण मिलते है १. दक्षिणात्य, २, पश्च्मोत्तारिय और ३. पुर्वीय. इन तीनो जज

संस्करणों में अनेक सर्गो और श्लोको का अंतर है . गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित दक्षिणात्य संसकरण में अनेक ऐसे सर्ग जो मूल पाठ से घुलमिल नहीं पाया है. अतः अभी तक उन पर प्रक्चित (मिलावट ) सर्ग लिखा मिलता है.

नेपाल में राष्ट्रीय अभिलेखागार में नेवारी लिपि में एक पंडू लिपि मिली ही जो १ हजार वर्ष पुराना है. उसमे सैकड़ो श्लोक कम है. अर्थात १ हजार साल इसको सैकड़ो श्लोक संकृत के जकारो ने अपने जरुरत के हिसाब से जोड़ दिए होंगे. ज्यादातर मिलावट और सैकड़ो श्लोक को बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड में किया गया है. ये ज्यादातर श्लोक अवतारवाद कि अवधारण करता है. चीनी बोद्ध ग्रन्थ के अनुसार बाल्मीकि रामायण में १२००० श्लोक है जबकि वर्तमान में २५००० श्लोक मिलते है . इस तरह से १३००० नए श्लोक मिल्य गए है.

b) महाभारत में मिलावट : "व्यास जी ने "जय" नामक लघु काब्य ग्रन्थ (जयो नामेतिहशय्म -महा. आदि. १/२,६२/२०) कि रचना कि उसमे ८८०००श्लोक थे. व्यास शिष्य वैशम्पायन इसको बढ़ाकर कर२४००० श्लोक का काब्य बना दिया और इसका नाम "भारत सहिता" दिया (चातिविर्शाती साह्स्त्रिम चक्रे भारत संहिताम-आदि. १/१०२) हो गई फिर सौती ने स्लोको कि शंख्या बदकार ९६८३६ हो गई. अर्थात मूल ग्रन्थ में ८८०० (जय ) से ९६८३६ (महाभारत) हो गई है.'' (आंबेडकर वांग्मय खंड ७ पृष्ट १२७ के अनुसार). इससे महाभारत कि प्रमाणिकता का लोस हुआ और इतिहास विनास्त हो गई है.

c) गीता में मिलावट: गीता महाभारत का ही अंग है. उसकी भी वर्तमान विशालता व्यावहारिक नहीं है युध्भूमि में कुछ मिनटों के लिए दिया यया उस्देश न तो इतना विशाल हो सकता है और न ही अवसर के अनुकूल है. प्रत्येक दृष्टि से मिलावटी एंड जोर गया है. वह व्यासकृत भी नहीं है. बाद में जोड़ा गया है.

" मूल भगवतगीता में प्रथम मिलावट उसी अंशा का भाग है जिसमे कृष्ण को ईश्वर हक गया है .......... दूसरा मिलावट वह भाग है जन्हा पूर्व मीमांसा के सिद्थान्तो कि पुस्ती के रूप में सांख्य और वेदांत दर्शन का वर्नान है. जो उससे पहले नहीं था. तीसरा मिलावट के श्लोक आते है जिनमे कृष्ण को ईश्वर के स्तर से परमेश्वर बनादिया. '' (आंबेडकर वांग्मय खंड ७ पृष्ट 275 के अनुसार).

d) मनुस्मिति में मिलावट: इसी प्रकार मनु स्मृति में भी समय समय पर मिलावट हुआ है इसमें सबसे ज्यादा हुआ है क्योकि ये हमारे देश का सविधान होता था. अर्थात दैनिक जीवन चर्या में था. यह जीवन और समाज का विधिग्रंथ था. इससे जीवन व् समाज सीता प्रभावित होता था. जैसे भारत के सविधान सिर्फ ६० साल में 100 के लगभग सशोधन हो चूका है.

मनु स्मृति में प्रेछेप (मिलावट) होने कि निम्न प्रमाण है

१. भाष्कार मेघतिथि (९वि सदी) कि तुलना में कुल्लुक भट्ट (१२वि सदी ) के सस्करण में १७० श्लोक ज्यादा है. वे तब तक मूल पाठ के साथ घुलमिल नहीं पाए थे

२. स्वामी आनंद तीर्थ ने महाभारत तात्पय्रार्थ निर्णय ( अ. ०२) में स्पस्ट स्वकर किया है. '' कही ग्रंथो में मिलावट किया जा रहा है, कही मूल वचनों को बदला जा रहा है. कही आगे पीछे किया जा रहा है. कही प्रमादवश अशुध्द लेखन हो रहा है जो ग्रन्थ नष्ट होने से बचे है वे काट छंट कि जा रही है अब तो साहित्य का १००००००वा भाग भी नहीं बचा है. यही हाल मनु स्मृति का है.

३. विदेशी प्रमाणों में " चीनी भाषा के हस्तलेखो में मिलता है. सन १९३२ में जापान ने बम विष्फोट करके चीनी दीवार (छोटा हिस्सा) को तोडा गया तो उसमे लोहे का एक ट्रंक मिला जसमे चिन्नी भाषा कि प्ताचिन पांडुलिपि मिली. वे हस्तलेख सर अन्गुल्स फ्रीट्स जार्ज ने ब्रिटिश म्यूजियम में रख दिया. इस पाण्डुलिपि के अनुसार मनुस्मृति में केवल ६८० श्लोक है.

४. यूरोपियन शोधकर्तायो मर. वुलर, मर. ज. जुल्ली, कीथ, माक दालान आदि ने भी मनुस्मृति सहित भारतीय साहित्य में मिलावट को स्वकर किया है. सर विलियम जोन्स के आनुसार २६८५ श्लोको में से २००५ श्लोक को नकली (मिलावट- प्रेछिप्त) घोषित करते है.

६. विश्वनाथ नारायण मांडलिक के अनुसार १४८, हरगोविंद के अनुसार १५३, जगन्नाथ धार्पुरे के अनुसार १००, जयंकृष्ण देव के अनुसार ५९ है. महात्मा गाँधी, रविन्द्रनाथ टैगोर और राधा कृष्णन ने भी स्वेअकर किया कि मनुस्मृति में मिलाने वाली आपतिजनक श्लोक मिलवात है.

आर्थार्ट वर्तमान में मिलनेवाल मनुस्मृति में २६८५ श्लोक मिलते है उसमे से सिर्फ ६८० से १४७१ को मूल माना जा सकता है बाकी मौका परस्त लोगो धरा समय समय पर मिलावट किया गया है.

e) पुरानो में मिलावट महारिशी दयानंद जी अननुसार पूरी २१ पुराण ब्रमानो द्वारा समय समय आम जनत को गुलाम बाने के लिए लिखा गया है. पूरी २१ पुराने झूठी है नीच लोगो द्वारा लिखी हुआ ग्रन्थ है.ये बाते सत्यार्थ प्रकास में लिखी है. अम्बेडकर जी ने आंबेडकर वांग्मय खंड 7 पृष्ट १३३मे लिखा है कि "ब्राहमणों ने परंपरा से प्राप्त पुराणो में अनेक नए अध्याय जोड़ दिए , पुराने अध्यायों को बदलकर नए अध्याय लिख दिए और पुराने नामो से ही अध्याय रच दिए. इस तरह इस प्रक्रिया से कुछ पुराणो कि पहले वाली सामग्री ज्यो कि त्यों रही, कुछ कि लुप्त कर दी , कुछ नहीं जोड़ दिया , कुछ में परिवर्तन कर दिया.



प्रछेपो (मिलावट ) से दुष्परिणाम : इसका परनाम आप देख रहे है.

१. रुदिवाद और पक्षपात पूर्ण वर्णनों के कारन जन्मते जातिवत है. इसीकारण सिर्फ २००० सालो में देश का २१ बार टुकड़े हो चुके है. एक तरह से पूरी एशिया में एक ही धर्म को मानते थे.

२. मूर्तिपूजा और गंगा के नाम से अरबो रुपीयोए का बुस्सिनेस चल रहा है.

३. आखंड भारत से ७४% जनता हिन्दू धर्म को छोड़ चुके है. रोज धर्म परिवरतन हो रहा है.

४. भ्रस्तचार चरम पर है. शाशन व्वस्था चाफ्र्मारा चूका है

५. वैदिक काल के इसिहास , संस्कृति सभ्यता आदि का विकृत चित्र सामने है.

६. प्राचीन भारत के आदि सविधान , आदि शाश्त्र के गौरवपूर्ण शाश्त्र का नाश हुआ है.

७. नविन मौकापरस्त लोगो द्वारा लिखी शाश्त्रो के कारण मूल विचार आज ख़त्म हो चूका है

Thanks
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