Tuesday, June 19, 2012

गौ पूजा आजका सबसे बडा देश द्रोह पर एक दृष्टि


भयंकर पापः हमारे धर्मशास्त्रों में एक और गौवध को भयंकर पाप बताया जाना और फिर भी शतपथ ब्राह्मण इत्‍यादि धर्मग्रंथों में गौमेध का वर्णन, महाभारत में राजा रंतिदेव द्वारा अतिथियों हेतु सहस्रों गायों का नित्‍यप्रति वध करने की कथा और

महाकव भवभूति के प्रसिद्ध नाटक रामचरित के चतुर्थ अंक मे महर्षि वाल्‍मीकि द्वारा गुरू बसिष्‍ट को गौवत्‍सरी का मांस भेंट करने के वर्णन में परस्‍पर जो विरोधाभास दिखाई देता है, उसका यही कारण

सुत्तनिकाय इत्‍यादि बौद्ध ग्रंथों में बुद्ध द्वारा तत्‍कालीन ब्राह्मण समाज में गौमांस भक्षण प्रथा के प्रचलित होने की निंदा किया जाना यह सूचना देता है कि आज से केवल 2,500 साल वर्ष पूर्व भी ब्राह्मणों में गौमांस भक्षण प्रचलित था, वास्‍तव में बौद्ध धर्म के कारण अहिंसा का आंदोलन जब इस देश में चला, तभी गौहत्‍या के प्रति वर्तमान धारणाएं बनीं, जो आज देश के लिए और स्‍वयं गौवंश्‍ के लिए भयानक संकट का कारण बन गई हैं
श्री जयचंद्र विद्यालंकार की प्रसिद्ध पुस्‍तक भारतीय इतिहास की रूपरेखा से कुछ शब्‍द देखिए,

‘’आर्य लोग पूरे मांसाहारी थे, गाय को उस समय भी अध्‍न्‍या अथात न माने लायक कहने लगे थे, तो भी विवाह के समया या अतिथि के आने पर बैल अथवा बेहत (बांझ गाय) को मारने की प्रथा थी’’

आरोग्‍य विभाग के अधिकारी कर्नल मेकटेगेर्ट ने कहा था ''सुशिक्षित दाइयों की फौज खडी करने की अपेक्षा गरीबों को दूध सुलभ हो, इस प्रकार दूध सस्‍ता कर देना ही बाल मृत्‍यों की संख्‍या घटाने का सब से अच्‍छा तरीका है.
 आस्‍ट्रेलिया सबसे बडा गौभक्षक देश है वहीं गाय सबसे अधिक खायी जाती है परन्‍तु सबसे अधिक दूध भी वहीं होता है इतना अधिक की उसे खपाने के लिए वहां दूध की दूसरी चीजें बनने लगीं जैसे कीमती फाउंन्‍ेटन पेनों के खोल,, कीमती एवरशार्प पेंन्सिलें, बढिया कागजों पर चमक दूध की पालिश से ही आती है, हवाई जहाज का पलाइवुड दूध की सहायता से ही बनता है''




डाक्‍टर मोरोबो ने कलकत्‍ता कारपोरेशन के सम्‍मुख गौरक्षा विषयक जो निबंध पढा था, उस का एक अंश यह हैः
'प्‍यूरी नाम पीला रंग बनाने के लिए ग्‍वाले गाय को केवल आम के पत्‍ते खिला कर खिला कर रखते हैं और इसके अतिरिक्‍त कोई दूसरी वस्‍तु न खाने को देते हैं, न पीने को पानी देते हैं उसका पेशाब बाजार में अच्‍छे दामें में बेच आते लेकिन बेचारी गाय भूख से तडप तडप कर मर जाती है''

गौदान
गंगातट के तीर्थों में पंडोंपुरोहितों को एक दुबली पतली गाय को पानी में खडा किए, और कुछ रूपए लेकर निर्धन व मूढ गौभक्‍तों को गौदान का पुण्‍य बांटने बांटते भी हम ने देखा है, दिनरात पानी में खडी रहने से उस गाय को जो भयानक वेदना भोगनी पडती है, तथा कुछ विशेष त्‍योहारों पर गायों को जिस प्रकार अन्‍नकूट खिलाखिला कर रोगिणी बना दिया जाता है, यह सब हमारी गौभक्ति का ही परिणाम है

खास खास पर्वों पर इतने उत्‍साह से गौदान किया जाता है कि एकएक पंडे के पास दसियों गाएं पहुंच जाती हैं, इतनी गायों को खिलाने पिलाने में असमर्थ व पंडा कसाइयों के तिलकधारी हिंदू दलालों को वे गाए बेच कर अर्थ और मोक्ष में जिस हास्‍यपद तरीके से सामंजस्‍य उपस्थि करता है, वह और भी भयानक है

T.B. आवारा गाय से
राष्‍ट्र के स्‍वास्‍थ्‍य को नष्‍ट करती है
आजकल गाय को खुला छोड दिया जाता हे जिस कारण भक्ष्‍य अभक्ष्‍य खाती फिरती है और अनेक भयानक रोगों के कीटाणुओं को अपने दूध में प्रश्रय दे कर राष्‍ट्र के स्‍वास्‍थ्‍य को नष्‍ट करती है, भुवाली सैनिटोरियम के भूतपूर्व अध्‍यक्ष डा शंकरलाल गुप्‍त ने अपनी प्रसिद्ध पुस्‍तक ''भारत में क्षय रोग'' में स्‍पष्‍ट लिखा है कि भारत में तपेदिक के इतने भीषण प्रसार का एक मुख्‍य कारण अधिकांश गायों को क्षयग्रसित होना है, यह सब भी हमारी विशेष गौभक्ति का ही परिणाम है

साभार
गौपूजा-- आजका सबसे बडा देशद्रोह है- Rantan Lal
  
ऋग्‍वेद का यह मंत्र पुष्‍ट प्रमाण

कर्हिस्वित सा त इंद्र चेत्‍यांसदघस्‍य
सदि् भनदो रख एषत् की
मित्र क्रुवो यच्‍छशने न गावः प्र थित्‍या आप्रगमयां शयंते

''हे इंद्र, जिस अस्तर व बाण को फेंक कर तुम ने पापी राक्षस को काटा था, वह कहां फेंकने योग्‍य है? जैसे गौहत्‍या के स्‍थान पर गाएं काटी जाती हैं, वैसे ही तुम्‍हारे इस अस्‍त्र से निहित हो कर मित्रद्वेषी  राक्षस लोग पृथ्‍वी पर गिर कर सदा के लिए सो जाते हैं''

उपरोक्‍त जानकारिया लेख की झलक मात्र हैं,,, इस लेख पर हंगामा होने पर लेखक ने बेहद शानदार आपत्तियों के उत्तर भी दिए,, लगभग 40 प़ष्‍ठों में पढिए


गौपूजा-- आजका सबसे बडा देशद्रोह हैRantan Lal


Donload Pdf archive.org
http://ia600709.us.archive.org/18/items/Gao-pooja-RatanLalBansal/Gao-pooja-aajka-sabse-bada-Rastra-droh-ratan-lal-bansal.pdf


easy Download from mediafire
http://www.mediafire.com/view/?d39350kbbt2uj8s

No comments:

Post a Comment